बेटी पढ़ी, नौकरी से क्यों दूर रह गई? शिक्षा में आगे लेकिन रोजगार में पीछे

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बेटियों ने शानदार प्रगति की है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक, लड़कियाँ अब लड़कों से आगे निकल रही हैं। परंतु सवाल यह है कि जब शिक्षा में बेटियाँ उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं तो नौकरी और रोजगार के क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व क्यों इतना कम है?

शिक्षा में बेटियों की बढ़त

पिछले एक दशक में बेटियों के नामांकन और परिणाम दोनों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। सरकारी योजनाओं, सामाजिक जागरूकता और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों के चलते आज गाँव से लेकर शहर तक, बेटियाँ शिक्षा के हर स्तर पर आगे हैं। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आधे से अधिक छात्राएँ लड़कियाँ हैं। लेकिन यह सफलता नौकरी और रोज़गार में नहीं बदल पा रही।

बेटी पढ़ी, नौकरी से क्यों दूर रह गई? शिक्षा में आगे लेकिन रोजगार में पीछे

रोजगार में गिरावट का सच

सांख्यिकी मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है। 2005 में जहाँ यह लगभग 32% थी, वहीं 2021 में घटकर करीब 22% रह गई। इसका सीधा असर देश की GDP पर भी दिखाई देता है। अगर पुरुष और महिलाएँ समान रूप से कार्यबल में शामिल हों, तो भारत की GDP कई गुना बढ़ सकती है।

असमानता की जड़ें

इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। पहला, समाज में अब भी यह मानसिकता बनी हुई है कि शिक्षा केवल विवाह या घरेलू जिम्मेदारियों को बेहतर निभाने के लिए है, न कि करियर बनाने के लिए। दूसरा, कार्यस्थल पर महिलाओं को समान अवसर और सुरक्षा का माहौल नहीं मिलता। तीसरा, मातृत्व और घरेलू जिम्मेदारियों के चलते अधिकांश महिलाएँ नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं।

अंतरराष्ट्रीय तुलना

अगर हम पड़ोसी देशों की बात करें, तो बांग्लादेश और चीन जैसे देशों में महिला श्रम भागीदारी दर भारत से कहीं अधिक है। बांग्लादेश में 36% से ज्यादा महिलाएँ कार्यबल में हैं। वहीं भारत में यह स्थिति अभी भी चिंताजनक है। इसका अर्थ है कि केवल शिक्षा बढ़ाना काफी नहीं है, बल्कि समाज और नीतियों में बदलाव भी ज़रूरी है।

सरकार और नीतियाँ

भारत सरकार ने 2015 में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान की शुरुआत की, जिसने शिक्षा में सुधार तो किया, लेकिन रोजगार के क्षेत्र में अभी भी ठोस नीतिगत कदमों की आवश्यकता है। महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल, फ्लेक्सी वर्किंग आवर्स और समान वेतन सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है।

आगे की राह

अगर भारत को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना है तो बेटियों को केवल पढ़ाना ही नहीं, बल्कि उनके लिए रोजगार और नेतृत्व के अवसर भी सुनिश्चित करने होंगे। सरकार, समाज और कॉरपोरेट सेक्टर को मिलकर ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे महिलाओं की कार्यक्षेत्र में भागीदारी बढ़े।

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