भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने राज्यों में उन अनाथ बच्चों की पहचान करें जो अब तक शिक्षा से वंचित हैं। कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ संवेदनशीलता का प्रतीक है, बल्कि बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 और अन्य सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया। कोर्ट ने साफ कहा कि प्रत्येक राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी अनाथ बच्चा शिक्षा के बिना न रहे। इसके लिए एक राज्यस्तरीय सर्वेक्षण की आवश्यकता है, ताकि ऐसे बच्चों की संख्या, उनका स्थान और उनकी स्थिति का स्पष्ट आंकलन किया जा सके।
अदालतें राजनीतिक लड़ाइयों का मंच न बनें
सुप्रीम कोर्ट ने इस अवसर पर यह भी टिप्पणी की कि न्यायपालिका का दुरुपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने एक विशेष मामले का हवाला देते हुए कहा कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम से प्रचारित करना अनुचित है। इस पर अदालत ने संबंधित हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए चेताया कि न्यायालयों का उपयोग व्यक्तिगत राजनीतिक एजेंडे के लिए न किया जाए।
लिंग आधारित भेदभाव पर नजर रखने के लिए समिति का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय में यह आदेश दिया है कि शिक्षा व्यवस्था में लिंग आधारित भेदभाव पर नजर रखने के लिए एक स्थायी समिति का गठन किया जाएगा। यह समिति प्रत्येक राज्य में कार्यरत होगी और इसकी निगरानी स्वयं मुख्य सचिवों द्वारा की जाएगी। यह समिति प्रत्येक तीन महीने में रिपोर्ट सौंपेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि लड़कियों और लड़कों दोनों को शिक्षा के समान अवसर मिलें।
शिक्षा की दिशा में क्या हो अगला कदम?
इस पूरे आदेश का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत का हर बच्चा, विशेषकर अनाथ और वंचित बच्चे, शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ सकें। सरकार को चाहिए कि वह स्कूल स्तर पर विशेष अभियान चलाए, NGO और सामाजिक संगठनों की सहायता ले, और शिक्षा के अधिकार को हर बच्चे तक पहुंचाने में कोई कसर न छोड़े।
यदि आप किसी ऐसे बच्चे को जानते हैं जो अनाथ है और शिक्षा से वंचित है, तो आप स्थानीय जिला प्रशासन, बाल कल्याण समिति या शिक्षा विभाग से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर शिक्षा से जुड़ी योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न सिर्फ एक संवैधानिक कर्तव्य की याद दिलाता है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि हर बच्चे का भविष्य महत्वपूर्ण है। शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना सरकार के साथ-साथ समाज की भी जिम्मेदारी है।